“गणेश चतुर्थी” ” के शुभ अवसर पर श्री गणेश जी की विशेष कृपा एवं आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु प्रचलित चार प्रमुख कथाएं”- ABPINDIANEWS Special
देहरादून- संकष्टी गणेश चतुर्थी का व्रत श्रद्धा, भक्ति और संकटों से मुक्ति का प्रतीक है। यह व्रत घर-परिवार की सुख-समृद्धि, संतान सुख, रुके कार्यों की सिद्धि तथा दैहिक, दैविक और भौतिक कष्टों के निवारण के लिए किया जाता है। इस व्रत के अवसर पर भगवान श्री गणेश की पूजा के साथ उनकी कथाओं का श्रवण अथवा पाठ अनिवार्य माना गया है। गणेश चतुर्थी से जुड़ी चार प्रमुख पौराणिक कथाएँ मानी जाती हैँ। आइए जानते हैं इन प्रेरणादायक कथाओं का सारांश,,,
प्रथम कथा: माता-पिता ही समस्त ब्रह्मांड हैं
एक बार देवताओं ने अनेक संकटों से घिरकर भगवान शिव से सहायता की प्रार्थना की। भगवान शिव ने अपने दोनों पुत्रों—कार्तिकेय और गणेश—से पूछा कि कौन देवताओं के संकट हर सकता है। उत्तर में दोनों ही तैयार हो गए।
तब शिवजी ने परीक्षा लेते हुए कहा—”जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करेगा, वही इस कार्य के योग्य होगा।”
कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर सवार होकर तुरंत निकल पड़े, जबकि गणेश जी ने सूझबूझ से कार्य लिया। उन्होंने चूहे पर सवार होने के बजाय अपने माता-पिता शिव और पार्वती की सात बार परिक्रमा की और कहा,
> “माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक बसे हैं।”
यह सुनकर भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए और गणेश जी को देवताओं की सहायता हेतु भेजा। साथ ही वरदान दिया कि जो व्यक्ति चतुर्थी के दिन तुम्हारी पूजा करेगा, वह समस्त तापों से मुक्त होकर सुख-संपत्ति से परिपूर्ण होगा।
द्वितीय कथा: पुत्र की रक्षा हेतु माँ की श्रद्धा
प्राचीन काल में एक कुम्हार अपने मिट्टी के बर्तन पकाने में असमर्थ हो रहा था। एक पंडित की सलाह पर उसने एक बालक को बर्तनों के साथ आंवा (भट्टी) में डाल दिया। संयोगवश वह दिन संकष्टी चतुर्थी का था।
बालक की माँ ने पूरी श्रद्धा से गणेश जी की आराधना की और अपने पुत्र की कुशलता की प्रार्थना की।
प्रभात में जब आंवा खोला गया, तो बर्तन पूरी तरह पक चुके थे, और बालक जीवित और सुरक्षित था। यह देख कुम्हार भयभीत हुआ और राजा हरिश्चंद्र को सारी बात बताई।
राजा ने माँ और बालक को बुलवाया, और माँ ने संकटों से मुक्ति दिलाने वाली संकष्टी चतुर्थी की महिमा सुनाई। तभी से यह व्रत संतति सुख और परिवार की समृद्धि के लिए किया जाने लगा।
तृतीय कथा: गणेश जी के बिना कार्य अपूर्ण
भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी के विवाह का आयोजन हो रहा था, परंतु किसी कारणवश गणेश जी को निमंत्रण नहीं दिया गया। देवताओं ने सोचा कि वे तो धीरे-धीरे मूषक पर चलते हैं और अधिक भोजन करते हैं, अतः बिना बुलाए विवाह संपन्न किया जाए।
जब बारात रवाना हुई, गणेश जी को द्वारपाल बनाकर छोड़ दिया गया। यह अपमान सहन न कर पाने पर गणेश जी ने अपनी मूषक सेना को भेजकर रास्ता खोदवा दिया, जिससे बारात के रथों के पहिए जमीन में धँस गए। कोई उपाय सफल न हुआ।
नारद मुनि की सलाह पर गणेश जी को आदरपूर्वक बुलाकर उनका पूजन किया गया। तभी जाकर रथ के पहिए निकले और विवाह संपन्न हुआ।
एक साधारण खाती (बढ़ई) ने गणेश जी का स्मरण कर पहिए ठीक कर दिए और कहा—
> “सर्वप्रथम गणपति का स्मरण न करने के कारण ही यह संकट आया।”
इसलिए, हर कार्य में सबसे पहले गणेश पूजन अनिवार्य है।
चतुर्थ कथा: श्री गणेश व्रत की उत्पत्ति
एक दिन नर्मदा तट पर माता पार्वती और भगवान शिव चौपड़ खेल रहे थे। निर्णय के लिए शिव जी ने एक बालक को बनाया और निर्णायक बना दिया। तीनों बार माता पार्वती जीत गईं, परंतु बालक ने शिव को विजयी बताया।
क्रोधित होकर माता ने बालक को लंगड़ा और कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया। बालक ने क्षमा मांगी। माता ने कहा कि नागकन्याएं आएंगी, उनसे गणेश व्रत की विधि सीखकर व्रत करो।
एक वर्ष पश्चात बालक ने 21 दिनों तक संकष्टी व्रत किया। गणेश जी प्रसन्न होकर दर्शन दिए और वरदान दिया। बालक ठीक होकर कैलाश पर्वत तक पहुँचा और अपनी कथा सुनाई।
यह सुन भगवान शिव ने भी गणेश व्रत किया और माता पार्वती का क्रोध शांत हुआ। फिर माता ने भी यह व्रत कर अपने पुत्र कार्तिकेय को पुनः प्राप्त किया।
तभी से यह व्रत मनोकामनाओं की पूर्ति और सकल कष्टों से मुक्ति के लिए विशेष रूप से माना जाने लगा।
संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत की मान्यता
यह व्रत सभी प्रकार की विघ्न-बाधाओं के निवारण, संतान सुख, धन-समृद्धि और शांति के लिए अचूक उपाय है।
प्रत्येक चतुर्थी को भगवान गणेश की पूजा और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देना विशेष फलदायी माना गया है।
व्रत करने वाला व्यक्ति तीनों तापों (दैहिक, दैविक, भौतिक) से मुक्त होता है और जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाता है।
संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत एक अत्यंत पुण्यदायी और फलदायक व्रत है। यह व्रत करने से व्यक्ति को संकटों से मुक्ति, मनोवांछित फल, पारिवारिक सुख, और आरोग्यता प्राप्त होती है। भगवान गणेश की कृपा से भक्त के सभी कार्य निर्विघ्न पूर्ण होते हैं – गौरव चक्रपाणी
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