उत्तराखंड विधायक किशोर उपाध्याय के बयान पर मचा बवाल, शहज़ाद ने हरिद्वार का पानी रोकने के बयान पर मैदान-पहाड़ विवाद भड़काने का लगाया आरोप,,,

देहरादून/हरिद्वार: उत्तराखंड विधानसभा के विशेष सत्र में उस समय राजनीतिक तापमान अचानक बढ़ गया जब टिहरी से भाजपा विधायक किशोर उपाध्याय ने टिहरी बांध से हरिद्वार को पानी देने पर रोक लगाने जैसी विवादित घोषणा कर दी। यह वही सत्र था जिसका शुभारंभ स्वयं महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने विशेष संबोधन से किया था।
किशोर उपाध्याय के इस बयान को न केवल विपक्ष बल्कि सत्तापक्ष के भीतर से भी कड़ी प्रतिक्रिया मिली। सत्र में ही भाजपा विधायक विनोद चमोली ने भी पहाड़ और मैदान के बीच की खाई को और चौड़ा करने वाला बयान देकर स्थिति को और जटिल बना दिया।
वहीं, हरिद्वार जनपद के लक्सर से बसपा विधायक मोहम्मद शहजाद ने इस पर तीखी आपत्ति जताते हुए हरिद्वार जनपद और गंगा तीर्थ की आवाज बुलंद की। उन्होंने कहा कि हरिद्वार का पानी, उसकी संस्कृति और उसके अधिकारों से खिलवाड़ किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। सत्र में उपस्थित अन्य 10 विधायकों की चुप्पी पर भी उन्होंने सवाल उठाए।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि जब राज्य अपनी स्थापना की 25वीं वर्षगांठ मना रहा है, ऐसे संवेदनशील बयानों से पहाड़ी-मैदानी तनाव की पुरानी आग फिर भड़क सकती है — वह आग जो राज्य गठन के शुरुआती दौर में बड़ी मुश्किल से शांत हुई थी।
ज्ञात हो कि हरिद्वार जनपद को उत्तराखंड में मिलाने के विरोध में कभी 10 वर्षों तक आंदोलन चला था। उत्तर प्रदेश विधानसभा ने चार बार हरिद्वार विहीन उत्तरांचल के प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेजे थे, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने अंततः हरिद्वार और उधमसिंह नगर को नए राज्य में सम्मिलित किया था।
अब 25 वर्ष बाद, जब राज्य विकास की दिशा में आगे बढ़ रहा था, ऐसे बयानों से प्रदेश में असहज माहौल बनने की आशंका है।
राजनीतिक गलियारों में जहां भाजपा विधायकों की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं, वहीं लक्सर विधायक मोहम्मद शहजाद अपने स्पष्ट रुख और साहसिक वक्तव्य के चलते एक “मैदानी हीरो” के रूप में उभरते दिखाई दे रहे हैं।
वहीं दूसरी ओर, हरिद्वार में पिछले कई दशकों से हरिद्वार की आवाज को सरकार में उठाने का दावा करने वाले जिम्मेदार जनप्रतिनिधि मौन दिखाई दिए। जनता के बीच यह सवाल गूंज रहा है कि जब हरिद्वार के अधिकार और अस्तित्व पर चोट की बात उठी, तो उनके प्रतिनिधि चुप क्यों रहे?

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