November 15, 2025

हरिद्वार में ऐतिहासिक आध्यात्मिक अनुष्ठान, जगद्गुरु राज राजेश्वराश्रम के सान्निध्य में जापान के गुरु मुनि का महामंडलेश्वर पत्ताभिषेक सम्पन्न,,,,,,

हरिद्वार में ऐतिहासिक आध्यात्मिक अनुष्ठान, जगद्गुरु राज राजेश्वराश्रम के सान्निध्य में जापान के गुरु मुनि का महामंडलेश्वर पत्ताभिषेक सम्पन्न,,,,,,

हरिद्वार: तीर्थनगरी हरिद्वार ने शुक्रवार को एक अद्भुत और महत्वपूर्ण आध्यात्मिक अध्याय को जन्म दिया। निरंजनी अखाड़े के पावन प्रांगण में जगद्गुरु शंकराचार्य श्री राज राजेश्वराश्रम महाराज की अध्यक्षता में जापान के बाला कुंभ गुरु मुनि जी का महामंडलेश्वर पत्ताभिषेक वैदिक रीति से सम्पन्न हुआ। यह दिव्य अनुष्ठान सनातन धर्म की वैश्विक प्रभावशीलता और आध्यात्मिक विस्तार का एक जीवंत प्रमाण बना।

समारोह का संचालन अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष एवं मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट के श्री महंत रवींद्र पुरी महाराज ने पूरी विधि-विधान के साथ किया। सन्यास परंपरा के अनुसार सबसे पहले गुरु मुनि के कानों से कुंडल उतारे गए, इसके बाद वैदिक मंत्रोच्चार के बीच दीक्षा प्रक्रिया प्रारम्भ हुई। जगद्गुरु राज राजेश्वराश्रम महाराज ने उनके कान में गुरु मंत्र फूंककर उन्हें सन्यास परंपरा से औपचारिक रूप से जोड़ा तथा पुष्प, जल और वैदिक स्तोत्रों से उनका अभिषेक कराया गया, जिससे पूरा वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा से गूंज उठा।

समारोह में उपस्थित महामंडलेश्वर, साधुओं तथा संतों ने सनातन धर्म की मजबूती और संरक्षण पर अपने विचार रखे। महामंडलेश्वर ललितानंद गिरी ने परंपराओं के संवर्धन और धर्म की निरंतरता पर जोर देते हुए समाज को अपनी जड़ों से जुड़े रहने की प्रेरणा दी।

अंत में जगद्गुरु शंकराचार्य राज राजेश्वराश्रम महाराज ने अत्यंत सारगर्भित उद्बोधन दिया। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म सृष्टि के साथ प्रकट हुआ है, परंतु आज विश्व में इसकी घटती उपस्थिति चिंता का विषय है। उन्होंने समाज को चेताते हुए कहा कि यदि आने वाली पीढ़ियों में सन्यासी और संतों की संख्या कम हुई, तो सनातन परंपरा को गंभीर चुनौतियाँ मिल सकती हैं।

जापान से आए गुरु मुनि जी का महामंडलेश्वर के रूप में अभिषेक न केवल अखाड़ा परंपरा के लिए गौरवपूर्ण क्षण है, बल्कि यह इस सत्य को भी स्थापित करता है कि सनातन धर्म की आभा अब सीमाओं के पार पहुँच रही है और विश्वभर में इसका प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है।

हरिद्वार में सम्पन्न यह ऐतिहासिक आयोजन आने वाली पीढ़ियों को यह संदेश देता है कि सनातन धर्म की रक्षा, संवर्धन और प्रसार के लिए अब समाज को एकजुट होकर आगे बढ़ने की आवश्यकता है।

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