आइए जाने उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति, प्राकृतिक संपदा एवं प्रदेश में आने वाली आपदाओं की प्रमुख वजह- ABPINDIANEWS Special
देहरादून (गौरव चक्रपाणी): उत्तराखंड, जिसे “देवभूमि” (देवताओं की भूमि) के नाम से भी जाना जाता है, भारत के उत्तर में स्थित एक अत्यंत सुंदर एवं प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर राज्य है। इसकी भौगोलिक स्थि@ति न केवल इसे सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से विशेष बनाती है, बल्कि पर्यावरण, पर्यटन और सामरिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण बनाती है।
भौगोलिक स्थिति
उत्तराखंड भारत के उत्तरी भाग में 28°43′ से 31°27′ उत्तरी अक्षांश तथा 77°34′ से 81°02′ पूर्वी देशांतर के बीच स्थित है। यह राज्य मुख्यतः दो मण्डलों में विभाजित है – कुमाऊँ और गढ़वाल।
राज्य की सीमाएं
उत्तराखंड की सीमाएं उत्तर में चीन (तिब्बत), पूर्व में नेपाल, दक्षिण में उत्तर प्रदेश, और पश्चिम में हिमाचल प्रदेश से लगती हैं। इसकी अंतरराष्ट्रीय सीमाएं इसे सामरिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण बनाती हैं।
राज्य की प्रमुख भौगोलिक विशेषताएं
- पर्वतीय भू-भाग
राज्य का अधिकांश भाग पर्वतीय है। हिमालय की उपशृंखलाएं यहाँ फैली हुई हैं। यहाँ की प्रमुख पर्वतमालाएं हैं – केदार, बंदरपूँछ, नंदा देवी आदि। नंदा देवी (7,816 मीटर) उत्तराखंड की सबसे ऊँची चोटी है। - नदियाँ एवं जलस्रोत
गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदियों का उद्गम यहीं होता है। गंगोत्री और यमुनोत्री उत्तराखंड के दो प्रसिद्ध तीर्थ स्थल हैं जहाँ से इन नदियों की उत्पत्ति होती है। - घाटियाँ और मैदान
उत्तराखंड में अनेक सुंदर घाटियाँ जैसे कि देहरादून घाटी, पिथौरागढ़ घाटी और अल्मोड़ा घाटी हैं। तराई और भाबर क्षेत्र राज्य के दक्षिणी भाग में पाए जाते हैं, जो कृषि के लिए उपयुक्त हैं। - जलवायु:
राज्य की जलवायु स्थान विशेष की ऊँचाई पर निर्भर करती है। जहाँ एक ओर ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में हिमपात होता है, वहीं तराई क्षेत्र में गर्म और आर्द्र जलवायु पाई जाती है।
राज्य की प्राकृतिक संपदाएं
उत्तराखंड वनों, नदियों, झीलों और जैव विविधता से भरपूर है। यहाँ पर कार्बेट नेशनल पार्क जैसे प्रसिद्ध वन्यजीव अभयारण्य हैं। जंगलों में चीड़, देवदार, बांज जैसे पेड़ प्रमुख हैं।
देवभूमि उत्तराखंड का महत्व
- धार्मिक दृष्टि से: उत्तराखंड चारधाम यात्रा (केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री) का केंद्र है।
- पर्यटन: पर्वतारोहण, ट्रैकिंग, स्कीइंग जैसी गतिविधियों के लिए यह एक प्रमुख स्थल है।
- सामरिक दृष्टि से: इसकी सीमा चीन और नेपाल से लगने के कारण यह भारतीय सुरक्षा की दृष्टि से भी अति महत्वपूर्ण है।
उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति इसे भारत का एक विशिष्ट राज्य बनाती है। यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता, नदियाँ, पर्वत, वन और धार्मिक स्थल न केवल देशवासियों के लिए, बल्कि विदेशी पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र हैं। इस राज्य की भौगोलिक विशेषताएं इसे एक अमूल्य धरोहर बनाती हैं, जिसे संरक्षित करना हम सभी का कर्तव्य है।
राज्य में आने वाली आपदाओं के प्रमुख कारण
- भूस्खलन (Landslides)
- बाढ़ (Floods)
- ग्लेशियर टूटना
- भूकंप (Earthquake)
- बर्फबारी व हिमस्खलन (Avalanche)
- जंगलों में आग (Forest Fire)
उत्तराखंड में आने वाली आपदाओं की प्रमुख वजह
1. भौगोलिक कारण
- उत्तराखंड एक पहाड़ी राज्य है, जो मुख्यतः हिमालयी क्षेत्र में स्थित है।
- यह क्षेत्र टेक्टोनिक प्लेटों की सक्रियता के कारण भूकंप संभावित क्षेत्र (Seismic Zone-IV और V) में आता है।
- तीव्र ढलान, कमजोर चट्टानें और अस्थिर पर्वतीय भूभाग अक्सर भूस्खलन को जन्म देते हैं।
2. जलवायु परिवर्तन:
- ग्लोबल वार्मिंग के कारण हिमालयी ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे नदियों का जलस्तर असामान्य रूप से बढ़ जाता है और ग्लेशियर फटने की घटनाएँ बढ़ रही हैं।
- अनियमित और अत्यधिक वर्षा भी भूस्खलन और बाढ़ का कारण बनती है।
3. अनियंत्रित और अवैज्ञानिक विकास
- सड़क निर्माण, बांध, टनल और भवन निर्माण जैसे कार्य अक्सर बिना भूवैज्ञानिक अध्ययन के किए जाते हैं।
- पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और जंगलों का विनाश पर्वतों की स्थिरता को प्रभावित करता है।
- अवैज्ञानिक निर्माण कार्यों से जल निकासी की प्राकृतिक व्यवस्था बाधित होती है, जिससे बारिश के समय बाढ़ और भूस्खलन की स्थिति उत्पन्न होती है।
4. जनसंख्या वृद्धि और पर्यटन का दबाव
- धार्मिक और साहसिक पर्यटन में वृद्धि से पर्वतीय इलाकों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है।
- ट्रैफिक, होटल निर्माण और कचरे के बढ़ते स्तर से पर्यावरणीय असंतुलन उत्पन्न होता है।
5. वनाग्नि (Forest Fires)
- गर्मियों में तापमान बढ़ने और सूखे की स्थिति के कारण जंगलों में आग लगती है।
- मानव जनित कारण जैसे—कूड़ा जलाना, लापरवाही से आग लगाना आदि भी प्रमुख कारण हैं।
प्रकृति से छेड़छाड़ और अतिक्रमण से आई आपदा के प्रमुख उदाहरण
- 2013 की केदारनाथ त्रासदी: भारी बारिश, बादल फटना और ग्लेशियर टूटने के कारण हजारों लोगों की मृत्यु हुई।
- 2021 चमोली आपदा: एक ग्लेशियर टूटने से जलप्रलय आया, जिससे तपोवन परियोजना समेत कई स्थानों पर भारी नुकसान हुआ।
निष्कर्ष 
उत्तराखंड की प्राकृतिक आपदाएँ केवल प्राकृतिक कारणों से नहीं होतीं, बल्कि मानवीय गतिविधियाँ भी इनका एक बड़ा कारण हैं। यदि हम पर्यावरण के प्रति संवेदनशील नहीं होंगे और विकास कार्यों में सतर्कता नहीं बरतेंगे, तो ऐसी आपदाएँ और अधिक विनाशकारी हो सकती हैं। इसलिए यह बेहद ज़रूरी है कि हम टिकाऊ विकास (Sustainable Development), पर्यावरण संरक्षण और आपदा प्रबंधन के तरीकों को अपनाएँ ताकि उत्तराखंड को एक सुरक्षित और समृद्ध राज्य बनाया जा सके।
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