उत्तराखंड हरीश रावत ने महर के गुस्से सहित तमाम मामलों पर इशारे इशारे में कह दी यह बड़ी बात,,,
देहरादून: परिवार में सयाना होना भी बहुत चुनौतीपूर्ण कार्य है और सयाने पन को निभाना और भी कठिन चुनौती है। यूं मैं स्वघोषित सयाना हूं। जिस समय स्थितियां बन और बिगड़ रही थी, उस समय किसी ने भी न मेरी सलाह की परवाह की, न समर्थन दिया। पिथौरागढ़ और कोटद्वार को लेकर मेरी राय हमेशा स्पष्ट और साफ रही है।
मैं तो उस समय का गुरु हूं, जब स्थितियां बिगड़ रही हों और एक पूरी झुंडली, मंडली शीर्ष के साथ कुछ और इरादा लेकर आई थी, मैं ही था तब भी! मैंने सार्वजनिक रूप से एक सभा में कहा था, “न ईधर-न उधर …….”
जब कुछ लोग स्थितियों को बिगाड़ने और मटका फोड़ने में जुट जाते हैं तो असहाय भीष्म पितामह भी बेचारे हो जाते हैं। #महाभारत में भी जब तक लोग सीखने की प्रक्रिया में थे, पितामह ही सब कुछ थे। जब बड़े हो गए, महारथी बन गए तो सबको अपने-अपने सलाहकार भी मिल गए, मार्गदर्शक भी मिल गए, दोस्त भी मिल गए और फिर राजनीति शकुनियों की हमेशा भरमार रहती है।
आज समय मुझे धृतराष्ट्र भी बता रहा है, समय मुझे भीष्म पितामहा भी कहलवा रहा है। मगर मुझे यह सब मंजूर है, कुछ भी कह लीजिए। जबकि मैं जानता हूं धृतराष्ट्र की क्या मजबूरी थी और मैं जानता हूं भीष्म पितामह की भी क्या मजबूरी थी।
और मैं अब इस बात को स्वीकारता हूं कि जब पिथौरागढ़, कोटद्वार को लेकर कुछ सलाह दे रहा था तो मेरी आवाज एक एकांगी हो गई तो मैंने भी चाहे मुझको, #भीष्म_पितामह की स्थिति में समझो या #धृतराष्ट्र की स्थिति में समझो, आगे चुप्पी साधना ही बेहतर है। मगर जब चुनौती और कठिनतर होती जा रही थी तो ऐसे समय में मुझे लगा कि नहीं, चुप रहना मेरे जीवन लक्ष्य विपरीत होगा, इसलिए मैं सब कुछ सुनने और सब कुछ बनने के लिए तैयार हूं।
मगर 2027 की लड़ाई हम सबको मिल-जुलकर के लड़नी पड़ेगी। हर क्षेत्र के हर योद्धा की क्षमता का आकलन करना पड़ेगा और उस क्षमता को सम्मान देना पड़ेगा। यूं भी मैंने कभी किसी का अगूंठा नहीं काटा है, कोई जबरदस्ती अपना हाथ कटाना चाहता है तो स्थिति अलग हो जाती है। मगर मेरा कर्तव्य है कि अंतिम दम तक स्थिति को सुधारूं और संवारूं।
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