August 22, 2025

गणपति महोत्सव 2025, श्रद्धालुओं की वर्तमान बदलती सोच होगी पर्यावरण संरक्षण की ओर नया कदम- ABPINDIANEWS Special 

गणपति महोत्सव 2025, श्रद्धालुओं की वर्तमान बदलती सोच होगी पर्यावरण संरक्षण की ओर नया कदम- ABPINDIANEWS Special 

देहरादून: आगामी गणपति महोत्सव को लेकर समाज में इस बार एक नई सोच उभर कर सामने आ रही है। जहां अब तक श्रद्धालु मिट्टी की प्रतिमाएं स्थापित कर विसर्जन की पारंपरिक परंपरा निभाते आए थे, वहीं इस वर्ष लोग पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए एक बड़ा और सराहनीय बदलाव अपना रहे हैं।

इस बार कई श्रद्धालु मिट्टी की मूर्तियों की बजाय धातु से बनी गणपति प्रतिमाओं को घर ला रहे हैं। खास बात यह है कि इन प्रतिमाओं का विसर्जन नहीं किया जाएगा, बल्कि गणेश चतुर्थी के समापन पर मूर्तियों को केवल स्नान कराकर वापस घर ले जाया जाएगा। इसके बाद पूरे वर्ष श्रद्धालु इन गणेश प्रतिमाओं की विधिवत पूजा-अर्चना करेंगे।

अगले वर्ष महोत्सव आने पर यही प्रतिमाएं पूरी श्रद्धा के साथ पंडालों में पुनः स्थापित की जाएंगी। इस पहल से न केवल जल प्रदूषण कम होगा बल्कि मूर्तियों के विसर्जन के दौरान पर्यावरण को होने वाले नुकसान को भी रोका जा सकेगा।

बहते जल में गणपति विसर्जन के दुष्परिणाम


गणपति विसर्जन के दौरान प्रतिमाओं में इस्तेमाल होने वाले प्लास्टर ऑफ पेरिस, रासायनिक रंग और अन्य विषैले पदार्थ नदियों व तालाबों के जल को प्रदूषित कर देते हैं। इससे जलजीवों का जीवन संकट में पड़ जाता है और पेयजल की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। अनेक स्थानों पर विसर्जन के बाद नदियों में मूर्तियों के अवशेष जगह जगह पैरों में आते और कहीं जल में आने तैरते दिखाई देते हैं, जिससे न केवल धार्मिक आस्था को ठेस पहुँचती है, बल्कि पर्यावरण संतुलन भी बिगड़ता है। यही कारण है कि अब समाज में पर्यावरण–अनुकूल उपायों को अपनाने की दिशा में नई सोच विकसित हो रही है।

धार्मिक आस्था और पर्यावरण संरक्षण का यह संगम समाज में सकारात्मक बदलाव की ओर संकेत करता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह परंपरा आगे बढ़ती रही तो गणपति महोत्सव एक नए स्वरूप में लोगों के सामने आएगा, जहां आस्था के साथ-साथ प्रकृति की रक्षा का संकल्प भी शामिल होगा। इस बार का गणपति महोत्सव केवल भक्ति और उल्लास के साथ पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी प्रस्तुत करेगा- गौरव चक्रपाणी ✍

Share