उत्तराखंड 5 वैज्ञानिकों के टीम उत्तरकाशी जलप्रलय के कारणों की पड़ताल कर लौटी, 4000 मीटर की ऊंचाई पर ड्रोन से किया सर्वे दिखे तबाही के कई निशान,,,
देहरादून: धराली में खीर गंगा के अपर कैचमेंट में 4000 मीटर की ऊंचाई पर वैज्ञानिकों को तबाही के निशान मिले हैं। जगह-जगह भारी मलबा बिखरा पड़ा है। हालांकि, अभी यह स्पष्ट नहीं किया जा सका है कि मलबा पुराना है या इस आपदा का। खैर, वैज्ञानिक अध्ययन कर वापस देहरादून लौट आए हैं।
खीर गंगा से निकली तबाही के कारणों का पता लगाने के लिए वैज्ञानिकों के 02 अलग-अलग दल धराली पहुंचे थे। जिसमें 05 सदस्यों का एक दल उत्तराखंड भूस्खलन शमन एवं प्रबंधन केंद्र के निदेशक डॉ शांतनु सरकार, जबकि एक दल उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (यूकॉस्ट) के वैज्ञानिक डॉ राजेंद्र सिंह राणा के नेतृत्व में पहुंचा था।
डॉ शांतनु सरकार के अनुसार पहले और दूसरे दिन खीर गंगा के अपर कैचमेंट में एरियल सर्वे करने में मौसम ने खलल डाला। लेकिन, प्रयास जारी रखा गया। तीसरे दिन मौसम ने साथ दिया तो धराली और खीर गंगा के ऊपरी क्षेत्रों के साथ ही आसपास के अन्य आपदाग्रस्त क्षेत्रों के भी सर्वेक्षण किया गया।
ऊपरी क्षेत्रों में जगह-जगह भारी मलबे के निशान मिले हैं। हालांकि, यह अभी स्पष्ट नहीं है कि मलबा पहले से जमा है या इस आपदा के बाद शेष रह गया है। फिर भी अब मलबे की मात्रा काफी कम रह गई है।
ऊपरी हिस्सों में मौसम के मिजाज के कारण करीब 5000 मीटर और उससे अधिक ऊंचाई पर अभी भी घने बादल हैं। जिस कारण यह स्पष्ट नहीं हो पाया जलप्रलय किस वजह से आई। हालांकि, ऊपरी क्षेत्र में ग्लेशियर झील की पुष्टि से इन्कार किया गया है।
डॉ शांतनु सरकार के अनुसार प्रारंभिक तौर पर यही कहा जा सकता है कि आपदा की वजह भारी वर्षा बनी। जिससे संभवत मलबे वाले क्षेत्रों में पानी जमा हुआ और निरंतर वर्षा से वह तेज ढलान में निचले क्षेत्रों में पूरे वेग का साथ बहता चला गया। ऊंचाई और ढाल अधिक होने से मलबे और पानी का मिश्रण पूरे वेग के साथ बहता चला गया और इतनी बड़ी त्रासदी आ गई।
4000 मीटर की ऊंचाई पर ड्रोन से लिए गए चित्र
उत्तराखंड विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (यूकॉस्ट) के दल ने भी धराली आपदा का विश्लेषण किया है। यह दल भी धराली से देहरादून लौट आया है। यूकॉस्ट के वैज्ञानिक डॉ राजेंद्र सिंह राणा के अनुसार भी सबसे बड़ी चुनौती खीर गंगा के ऊपरी क्षेत्र में बादलों के पार देखना है।
फिर भी बड़े जतन के बाद ड्रोन के माध्यम से 4000 मीटर की ऊंचाई तक पहुंच बनाई गई। वहां के कई चित्र लिए गए हैं। संबंधित क्षेत्र और इससे ऊपर के हिस्सों के आपदा से पहले के सेटेलाइट चित्र उपलब्ध हैं। अब विशेष साफ्टवेयर के माध्यम से वर्तमान और पूर्व के चित्रों का आकलन किया जाएगा। ताकि यह स्पष्ट किया जा सके कि आपदा के कारण क्या रहे।
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