उत्तराखंड, राहुल गांधी का चुनाव आयोग पर आरोप, संवैधानिक परिप्रेक्ष्य और उसका न्यायालयीय दृष्टिकोण-अरविन्द कुमार श्रीवास्तव
हरिद्वार: संवैधानिक संस्थाओं पर विश्वास बनाए रखना लोकतंत्र के लिए आवश्यक है; निराधार आरोप इस विश्वास को तोड़ते हैं।
भारत का लोकतंत्र “विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र” कहलाता है, और इसकी नींव स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव पर टिकी हुई है। इन चुनावों के संचालन की ज़िम्मेदारी संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत गठित चुनाव आयोग (Election Commission of India – ECI) पर है। हाल ही में कांग्रेसी, विपक्ष के नेता नेता राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए हैं, जिनमें आयोग की निष्पक्षता पर सवाल खड़े करना और सत्ताधारी दल के पक्ष में पक्षपात का आरोप शामिल है। उनका कहना है कि आयोग ने कुछ परिस्थितियों में संविधान के मूल सिद्धांत — मुफ़्त और निष्पक्ष चुनाव का उल्लंघन किया है। राहुल गांधी ने दावा किया कि उनके पास “एटम बम” जैसे सबूत हैं, जो यह सिद्ध करते हैं कि ECI वोट चोरी में शामिल है। इससे पहले भी राहुल गाँधी ईवीएम् के माध्यम से भारत के चुनाव आयोग पर प्रश्न उठाते रहे हैं।
भारत के संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुसार चुनाव आयोग को संपूर्ण चुनाव प्रक्रिया के संचालन और नियंत्रण का अधिकार देता है। यह आयोग को स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने का दायित्व सौंपता है। वहीँ अनुच्छेद 14 विधि के समक्ष समानता और समान संरक्षण और अनुच्छेद 19(1)(a) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात करते हैं, यदि चुनाव आयोग पक्षपात करता है, तो यह दोनों अनुच्छेदों का उल्लंघन हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) में कहा कि लोकतंत्र और निष्पक्ष चुनाव संविधान की मूल संरचना का हिस्सा हैं।
एस एस धनोआ बनाम भारत संघ (1991) राष्ट्रपति द्वारा इलेक्शन कमीशन ऑफ़ इंडिया में अतिरिक्त सदस्यों की नियुक्ति और फिर अचानक समाप्ति को चुनौती दी गई। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा राष्ट्रपति के पास अनुच्छेद 324(2) के तहत क्षेत्र (पोस्ट्स) बदलने का अधिकार है; यदि क्षेत्र कानूनी रूप से रद्द किए गए हैं, तो यह स्वतंत्रता का हनन नहीं है। साथ ही, मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त्स के बीच संरचनात्मक अंतर स्वीकारा।
एम् एस गिल बनाम मुख्य चुनाव आयुक्त (1978) 1 SCC 405 में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि, अनुच्छेद 324 के तहत इलेक्टिओं कमीशन ऑफ़ इंडिया को व्यापक अधिकार हैं ताकि चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता बनी रहे। टी एन सेशन बनाम भारत संघ (1995) मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य आयोग सदस्यों की शक्तियों और नियुक्ति विधि पर सवाल उठाए गए। सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि, आयोग एक सहमति आधारित (multi-member) संरचना है, जहाँ CEC ‘प्रथम में समान’ (primus inter pares) होता है। तथा मोहन लाल त्रिपाठी बनाम चुनाव आयोग (1992) में कहा कि, चुनाव आयोग का कर्तव्य है कि वह निष्पक्षता बनाए रखे, चाहे राजनीतिक दबाव कितना भी हो।
पी.सी. जोशी बनाम भारत संघ (1991) के मामले में निर्णय करते हुए कहा कि, चुनाव आयोग स्वतंत्र संवैधानिक संस्था है और किसी भी प्रकार का सरकारी हस्तक्षेप असंवैधानिक है। Union of India v. Association for Democratic Reforms (भारत संघ बनाम डेमोक्रेटिक सुधार संघ) (2002) 5 SCC 294 में उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड और संपत्ति विवरण को अनिवार्य रूप से प्रकाशित करने का आदेश दिया।
पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज बनाम भारत संघ (2003) में सर्वोच्च न्यायलय ने कहा कि, मतदाताओं को सही जानकारी (नामांकन फॉर्म, आपराधिक पृष्ठभूमि आदि) उपलब्ध कराना निष्पक्ष चुनाव का अनिवार्य हिस्सा है। ए.सी. जोस बनाम सिविल पॉल (2004) में पारित निर्णय के अनुसार, चुनाव आयोग के किसी भी निर्णय को न्यायिक समीक्षा के दायरे में लाया जा सकता है, यदि वह मनमाना हो।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय स्पष्ट करते हैं कि चुनाव आयोग का उद्देश्य लोकतंत्र की रक्षा है, और इसकी स्वतंत्रता बनाए रखना सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। इसलिए, आवश्यक है कि इन आरोपों की स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी जांच हो—ताकि या तो दोषियों को सजा मिले, या संस्था की साख बहाल हो।
राहुल गांधी के आरोप
(अ) वोट चोरी का आरोप. उन्होंने इसे “देशद्रोह” की श्रेणी में रखा।
(ब) मतदाता सूची में पाँच प्रकार की अनियमितताएँ
1. डुप्लीकेट वोटर – एक ही व्यक्ति का नाम कई जगह दर्ज होना।
2. फर्जी पते – ऐसे पते, जिनका अस्तित्व ही नहीं।
3. अमान्य फोटो – जिससे वोटर की पहचान स्पष्ट न हो सके।
4. फॉर्म 6 का दुरुपयोग – नए मतदाताओं के पंजीकरण में धोखाधड़ी।
5. डेटा की पारदर्शिता में कमी – मशीन-रीडेबल डेटा और CCTV फुटेज की उपलब्धता सीमित करना।
(स) राज्यवार आरोप
बिहार – Special Intensive Revision के दौरान 65 लाख नाम हटना।
महाराष्ट्र – लगभग 40 लाख “रहस्यमय” नए मतदाता जुड़ना।
(द) राजनीतिक पक्षपात- भाजपा के पक्ष में काम करने और विपक्षी मतदाताओं के अधिकारों को कमजोर करने का आरोप।
जबाव में चुनाव आयोग ने राहुल गाँधी के सभी आरोपों को “निराधार”, “गैर जिम्मेदाराना” और “संवैधानिक संस्था को अपमानित करने वाला” बताया है तथा कहा है कि, कोई औपचारिक शिकायत या प्रमाण नहीं मिल पाए। महाराष्ट्र में “मैच-फिक्सिंग” के दावे को “पूरी तरह असंभव” करार दिया गया है। आयोग ने स्पष्ट किया कि मतदाता सूची की प्रक्रिया कानूनन पारदर्शी और जन-सुनवाई आधारित होती है।
इसके आलावा राहुल ने आरोप लगाया है कि, आयोग ने विपक्ष की शिकायतों पर कार्रवाई नहीं की और सत्ताधारी नेताओं के भाषणों में आचार संहिता उल्लंघन के मामलों में नरमी दिखाई।
प्रभाव यदि यह आरोप सत्य हैं, तो यह अनुच्छेद 14, 19 और 324 का उल्लंघन होगा। निष्पक्ष चुनाव का ह्रास लोकतंत्र के पतन का संकेत है।
राजनीतिक और प्रशासनिक प्रभाव यदि ECI की निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं, तो लोकतांत्रिक प्रक्रिया कमजोर हो जाती है।
सुधार-
1. चुनाव आयोग की नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता — सुप्रीम कोर्ट ने अनूप बारनवाल बनाम भारत संघ (2023) में कहा कि नियुक्ति में न्यायपालिका की भूमिका हो।
2. आचार संहिता उल्लंघन पर त्वरित कार्रवाई।
3. जनता के लिए शिकायत निवारण पोर्टल का सुदृढ़ीकरण।
4. अधिक पारदर्शी मतदाता सूची, ब्लॉकचेन वेरिफिकेशन, VVPAT 100% मिलान आदि।
संबंधित कानून
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 – मतदाता सूची का निर्माण और संशोधन।
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 – चुनाव प्रक्रिया, चुनाव अपराध और विवाद निवारण।
अनुच्छेद 324 – चुनाव आयोग की स्थापना और अधिकार
324(1) – चुनावों का नियंत्रण, संचालन और प्रबंधन चुनाव आयोग को सौंपा गया है।
324(2) – आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त और आवश्यकतानुसार अन्य आयुक्त होंगे।
324(5) – मुख्य चुनाव आयुक्त की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए उन्हें केवल संसद के विशेष प्रस्ताव द्वारा हटाया जा सकता है।
अनुच्छेद 329: चुनाव संबंधी विवाद केवल चुनाव याचिका से ही उठाए जा सकते हैं।
6. निष्कर्ष
राहुल गांधी द्वारा चुनाव आयोग पर लगाये गए आरोप संवैधानिक, न्यायिक और लोकतांत्रिक मुद्दों पर प्रश्नचिह्न हैं। ECI को स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से कार्य करना चाहिए। आरोपों की पारदर्शी और निष्पक्ष जांच आवश्यक है—ताकि लोकतंत्र की साख बनी रहे और जन-विश्वास सुनिश्चित हो। राहुल गांधी के आरोप राजनीतिक हों या वास्तविक, उनका प्रभाव सीधा लोकतंत्र की जड़ों पर पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय और संविधान स्पष्ट करते हैं कि चुनाव आयोग का कर्तव्य केवल चुनाव कराना नहीं, बल्कि ऐसा माहौल बनाना है जिसमें हर नागरिक समान अवसर के साथ भाग ले सके-
डॉ. अरविन्द कुमार श्रीवास्तव, अधिवक्ता(डिप्टी लीगल ऐड डिफेंस कौंसिल) जिला विधिक सेवा प्राधिकरण हरिद्वार।
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