धर्म – कर्म, अन्याय के विरुद्ध न्याय का शाश्वत प्रतीक है ब्राह्मण शिरोमणि भगवान परशुराम,,,,,,
दिल्ली- भारतीय संस्कृति में अनेक देवी-देवताओं की आराधना होती है, जिनमें प्रत्येक का कोई न कोई विशेष उद्देश्य और भूमिका रही है। इन्हीं में एक महान और वीर अवतार हैं भगवान परशुराम, जो भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं। वे एक ऐसे देवता हैं जो धर्म की स्थापना के लिए क्रोध और शस्त्र का प्रयोग करते हैं। वे न केवल ब्राह्मण थे, बल्कि एक महान योद्धा और तपस्वी भी थे। उनका जीवन संदेश देता है कि जब अन्याय अपनी सीमाएं लांघ जाता है, तब धर्म की रक्षा के लिए कठोरता आवश्यक हो जाती है।
भगवान परशुराम की जन्म कथा
भगवान परशुराम का जन्म भृगुवंशी ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के घर हुआ था। उनका जन्म त्रेता युग में हुआ और उन्हें चिरंजीवी (अमर) माना जाता है। यह भी माना जाता है कि वे कलियुग के अंत में भगवान कल्कि को शस्त्रविद्या सिखाने के लिए प्रकट होंगे। परशुराम का नाम ‘परशु’ (कुल्हाड़ी) से पड़ा, जो उन्हें शिवजी से प्राप्त हुई थी। यह शस्त्र उनके अद्वितीय योद्धा स्वरूप का प्रतीक है।
क्षत्रियों के अत्याचार से पीड़ित इन्होंने पृथ्वी को इक्कीस बार किया क्षत्रियविहीन
परशुराम जी की सबसे प्रसिद्ध कथा है क्षत्रियों के अत्याचार से पीड़ित होकर उन्होंने पृथ्वी को इक्कीस बार क्षत्रियविहीन कर दिया। परंतु यह कार्य किसी क्रूरता का नहीं, बल्कि धर्म की स्थापना का प्रतीक था। वे क्रोध में थे, परंतु उनका क्रोध न्यायपूर्ण था। उनके जीवन से यह स्पष्ट होता है कि जब व्यवस्था में अन्याय गहराने लगे, तब एक योद्धा ऋषि को खड़ा होना पड़ता है।
अद्वितीय गुरू हैं भगवान परशुराम
भगवान परशुराम का योगदान केवल युद्ध तक सीमित नहीं था। वे अद्वितीय गुरू भी थे। उन्होंने द्रोणाचार्य, भीष्म पितामह और कर्ण जैसे महान योद्धाओं को शस्त्रविद्या सिखाई। यह दर्शाता है कि वे केवल शस्त्र के उपयोग में ही नहीं, बल्कि ज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में भी महान थे।
आज के समय में जब समाज में अन्याय, भ्रष्टाचार और हिंसा का बोलबाला है, तब भगवान परशुराम की शिक्षाएँ और उनका जीवन हमारे लिए मार्गदर्शक बन सकते हैं। वे हमें सिखाते हैं कि धर्म और न्याय की रक्षा के लिए शक्ति का प्रयोग करना आवश्यक होता है, परंतु उसका उद्देश्य सदा लोक कल्याण होना चाहिए।
कथा का सरांश
भगवान परशुराम भारतीय इतिहास के एक ऐसे अमिट प्रतीक हैं जो धर्म, न्याय, बल, तप और शिक्षा—इन सभी मूल्यों को एक साथ जीते हैं। वे न केवल एक ऐतिहासिक महापुरुष हैं, बल्कि एक आदर्श हैं, जो आज भी युवाओं को सच्चाई और न्याय की राह पर चलने की प्रेरणा देते हैं।
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