“पितृ तर्पण में तुलसी का अद्भुत महत्व, धर्म- विज्ञान और श्रद्धा का अद्भुत संगम है तुलसी, ABPINDIANEWS SPECIAL
देहरादून/हरिद्वार: भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपराओं में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है। यह समय पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने, उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और तर्पण, श्राद्ध तथा पिंडदान जैसे अनुष्ठानों के माध्यम से उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करने का होता है। इन सभी अनुष्ठानों में एक विशेष पौधे का उल्लेख बार-बार आता है — तुलसी। तुलसी न केवल एक पवित्र पौधा है, बल्कि पितृ पूजा में भी इसका विशेष स्थान है।
धार्मिक दृष्टिकोण: क्यों महत्वपूर्ण है तुलसी
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, तुलसी देवी लक्ष्मी का स्वरूप मानी जाती हैं। ‘गरुड़ पुराण’, ‘स्कंद पुराण’ और ‘पद्म पुराण’ में तुलसी को अत्यंत शुभ और पवित्र बताया गया है। पितृ पूजा में तुलसी को इसलिए जोड़ा जाता है क्योंकि यह आत्मा की मुक्ति और पवित्रता का प्रतीक है।
तर्पण जल या पिंडदान में तुलसी के पत्ते डालने से वह जल अधिक पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि तुलसी के संपर्क से जल या अन्न में शुद्धता आती है और वह पूर्वजों तक सहज रूप से पहुंचता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब यमराज की सेना आत्मा को ले जाने आती है, तब तुलसी के स्पर्श से वह आत्मा भयमुक्त रहती है और सरलता से मोक्ष की ओर अग्रसर होती है।
तुलसी और पिंडदान (अविभाज्य संबंध)
पिंडदान के समय चावल, जौ, तिल और घी के साथ तुलसीपत्र मिलाकर पिंड बनाए जाते हैं। इसे गंगाजल या किसी पवित्र नदी के जल से स्पर्श कराया जाता है। ऐसा माना जाता है कि तुलसीयुक्त पिंडदान पूर्वजों को संतोष प्रदान करता है और उनकी आत्मा की शांति में सहायक होता है।
कुछ पुराणों में यह भी उल्लेख मिलता है कि “जिस पिंड में तुलसी नहीं, वह पिंड पूर्वजों तक नहीं पहुंचता।”
विज्ञान और तुलसी एवं इसके आयुर्वेदिक महत्व
आधुनिक विज्ञान और आयुर्वेद के अनुसार तुलसी में औषधीय गुण भरपूर मात्रा में होते हैं। तुलसी:
जल को रोगाणु रहित बनाती है
पाचन तंत्र को ठीक रखती है
वातावरण को शुद्ध करती है
तनाव को कम करने में सहायक होती है
जब श्राद्ध अनुष्ठान में तुलसी का उपयोग होता है, तो वह स्थान ऊर्जा से परिपूर्ण रहता है। ऐसे में श्रद्धालु और कर्मकांड करने वाले पंडित भी मानसिक रूप से शांत रहते हैं।
विशेषज्ञो के विचार/ आस्था का प्रतीक
हरिद्वार ज्वालापुर के पंडित आशु मिश्रा ने बताया कि “तुलसी का पत्ते बिना पिंडदान अधूरा माना जाता है। तुलसी पवित्रता और दिव्यता की प्रतीक है। पूर्वजों को तर्पण करते समय उसका उपयोग अनिवार्य है।”
हरिद्वार तीर्थ पुरोहित एवं कर्मकांड विशेषज्ञ पंडित रक्षपाल खेड़ेवालों ने बताया कि “पितृ पक्ष, श्राद्धो मे तुलसी का विशेष महत्व है। हमारे घरो में तुलसी मां का पौधा हर समय विराजमान रहता है। पितरों की पूजा में इसका प्रयोग करना विशेष फलदाई बताया गया है। यह हमारे संस्कारों का हिस्सा है और तुलसी माता के दर्शन मात्र से मन को असीम शांति प्राप्त होती है।”
परंपरा, श्रद्धा और विज्ञान का अद्भुत मेल
पितृ पूजा में तुलसी का समावेश केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि एक गूढ़ संकेत है — यह दर्शाता है कि हमारी आस्थाएं प्रकृति से जुड़ी हैं और हमारे संस्कारों में हर छोटी चीज का गहरा महत्व है।
तुलसी न केवल हमारे पूर्वजों तक हमारी श्रद्धा पहुंचाने का माध्यम है, बल्कि यह हमारे जीवन में शांति, पवित्रता और संतुलन भी लाती है।
“इस पितृ पक्ष, जब आप अपने पूर्वजों को तर्पण दें, तो तुलसी के महत्व को समझते हुए अपने अनुष्ठान में अवश्य शामिल करें”– गौरव चक्रपाणी
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